Sunday, November 1, 2009

हमारे समय के प्रगतिशीलों का कच्चा चिट्ठा

हमारे समय के प्रगतिशील लोग (कविता)

"हमारे समय के प्रगतिशील लोगों के लिए / स्त्री के बारे में सोचना माने सेक्स के बारे में सोचना / लोगों के जीने-खाने की आज़ादी से ज़्यादा फ़िक्र / उन्हें उनकी सोने की आज़ादी को लेकर है / दुनिया की सबसे प्रगतिशील स्त्री वो है / जो बाहर अपने पति और परिवार के ख़िलाफ़ बोलती हुई / उनके साथ भीतर चली आए।"

X X X

"हमारे समय के प्रगतिशील लोग चाहते हैं कि सेक्स एजुकेशन बचपन से मिले / ताकि जब आठवीं क्लास के बच्चे एमएमएस बनाएँ / तो कॉन्डोम का इस्तेमाल करना ना भूलें / हमारे समय के प्रगतिशील लोग चाहते हैं कि / एक दिन कॉन्डोम इतना पॉपुलर हो जाए कि / बच्चे कॉन्डोम को गुब्बारों की तरह उड़ाएँ / और माँ-बाप इस महंगाई के ज़माने में गुब्बारों का पैसा बचा लें।"

X X X

"हमारे समय के प्रगतिशील लोग / पुरबा हैं कि पछुआ हैं / खरगोश हैं कि कछुआ हैं / पता ही नहीं चलता। हमारे समय के प्रगतिशील लोग / मोटे हैं कि महीन हैं / अमेरिका हैं कि चीन हैं / पता ही नहीं चलता।"

( इस कविता को पूरा पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें )

लेखक की वेबसाइट के होम पेज का पता: http://www.abhiranjankumar.com

9 comments:

  1. Replies
    1. शुक्रिया डॉ. राधेश्याम शुक्ल जी। लंबे समय बाद इस प्लेटफॉर्म पर लौटा हूं। फिर भी आशा है, स्नेह बनाए रखेंगे।

      Delete
  2. Sunder kavita ke saath aapka manch par aana mubarak kadam hai
    shubhkamnaon sahit
    Shabdon ki bebeki ko daad mein

    है सूनी सूनी सोच, कंवारी भी है अभी
    शब्दों से माँग उसकी सज़ा दें तो ठीक है
    Devi nangrani

    ReplyDelete
    Replies
    1. शुक्रिया देवी नांगरानी जी। लंबे समय बाद इस प्लेटफॉर्म पर लौटा हूं। फिर भी आशा है, स्नेह बनाए रखेंगी।

      Delete
  3. हिंदी ब्लॉग लेखन के लिए स्वागत और शुभकामनायें
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें तथा अपने सुन्दर
    विचारों से उत्साहवर्धन करें

    ReplyDelete
    Replies
    1. लंबे समय बाद इस प्लेटफॉर्म पर लौटा हूं। आपके सुझाव को ज़रूर ध्यान में रखूंगा अजय भाई।

      Delete
  4. शुक्रिया अमित भाई। लंबे समय बाद इस प्लेटफॉर्म पर लौटा हूं। आपकी उम्मीदों पर खरा उतरने की कोशिश करेंगे।

    ReplyDelete