हमारे समय के प्रगतिशील लोग (कविता)
"हमारे समय के प्रगतिशील लोगों के लिए / स्त्री के बारे में सोचना माने सेक्स के बारे में सोचना / लोगों के जीने-खाने की आज़ादी से ज़्यादा फ़िक्र / उन्हें उनकी सोने की आज़ादी को लेकर है / दुनिया की सबसे प्रगतिशील स्त्री वो है / जो बाहर अपने पति और परिवार के ख़िलाफ़ बोलती हुई / उनके साथ भीतर चली आए।"
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"हमारे समय के प्रगतिशील लोग चाहते हैं कि सेक्स एजुकेशन बचपन से मिले / ताकि जब आठवीं क्लास के बच्चे एमएमएस बनाएँ / तो कॉन्डोम का इस्तेमाल करना ना भूलें / हमारे समय के प्रगतिशील लोग चाहते हैं कि / एक दिन कॉन्डोम इतना पॉपुलर हो जाए कि / बच्चे कॉन्डोम को गुब्बारों की तरह उड़ाएँ / और माँ-बाप इस महंगाई के ज़माने में गुब्बारों का पैसा बचा लें।"
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"हमारे समय के प्रगतिशील लोग / पुरबा हैं कि पछुआ हैं / खरगोश हैं कि कछुआ हैं / पता ही नहीं चलता। हमारे समय के प्रगतिशील लोग / मोटे हैं कि महीन हैं / अमेरिका हैं कि चीन हैं / पता ही नहीं चलता।"
( इस कविता को पूरा पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें )
लेखक की वेबसाइट के होम पेज का पता: http://www.abhiranjankumar.com
kya vebak tippadi hai.
ReplyDeleteशुक्रिया डॉ. राधेश्याम शुक्ल जी। लंबे समय बाद इस प्लेटफॉर्म पर लौटा हूं। फिर भी आशा है, स्नेह बनाए रखेंगे।
DeleteSunder kavita ke saath aapka manch par aana mubarak kadam hai
ReplyDeleteshubhkamnaon sahit
Shabdon ki bebeki ko daad mein
है सूनी सूनी सोच, कंवारी भी है अभी
शब्दों से माँग उसकी सज़ा दें तो ठीक है
Devi nangrani
शुक्रिया देवी नांगरानी जी। लंबे समय बाद इस प्लेटफॉर्म पर लौटा हूं। फिर भी आशा है, स्नेह बनाए रखेंगी।
Deletebahut khoob
ReplyDeleteशुक्रिया भाई।
Deleteहिंदी ब्लॉग लेखन के लिए स्वागत और शुभकामनायें
ReplyDeleteकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें तथा अपने सुन्दर
विचारों से उत्साहवर्धन करें
लंबे समय बाद इस प्लेटफॉर्म पर लौटा हूं। आपके सुझाव को ज़रूर ध्यान में रखूंगा अजय भाई।
Deleteशुक्रिया अमित भाई। लंबे समय बाद इस प्लेटफॉर्म पर लौटा हूं। आपकी उम्मीदों पर खरा उतरने की कोशिश करेंगे।
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