(26 नवंबर 2015)
अगर नीतीश कुमार सचमुच बिहार में प्रभावशाली तरीके से शराबबंदी लागू कर पाए, तो उनसे मेरी आधी शिकायतें दूर हो जाएंगी। शराब बहुत सारी बुराइयों की जड़ है। इसकी वजह से महिलाओं का जीवन नरक बन जाता है, बच्चों पर बुरा असर पड़ता है, लोग बड़ी संख्या में गंभीर बीमारियों के शिकार होते हैं, बड़े पैमाने पर दुर्घटनाएं होती हैं, कानून-व्यवस्था के हालात बिगड़ते हैं, भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है और देश की कार्यशक्ति और अर्थव्यवस्था पर प्रत्यक्ष और परोक्ष चोटें पड़ती हैं।
कारगर शराबबंदी के लिए नीतीश कुमार को आग के ढेर से गुज़रना होगा। देश के अन्य हिस्सों की ही तरह बिहार में भी शराब माफिया बहुत पावरफुल है। ख़ुद नीतीश जी की टोली में कई लोग ऐसे होंगे, जो शराब के धंधे से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जुड़े होंगे। नीतीश जी को उनपर लगाम कसनी होगी। शराबबंदी का असली मकसद तभी हासिल होगा, जब गली-गली अवैध शराब की भट्ठियां न लग जाएं। बिहार में ज़हरीली शराब से हर साल बड़ी संख्या में मौतें होती हैं। बिहार पुलिस के एक आला अधिकारी ने कहा था कि बिहार में जितनी शराब वैध तरीके से बिकती है, उतनी ही अवैध तरीके से भी बिकती है।
इतना ही नहीं, इस वक्त शराब से बिहार को करीब साढे तीन हज़ार करोड़ रुपये के सालाना राजस्व की प्राप्ति होती है। नीतीश जी को इसका लालच छोड़ना होगा। अपने पिछले कार्यकाल में शराब से प्राप्त पैसे पर वह इस हद तक निर्भर हो गए थे कि यहां तक कह दिया था कि लोग शराब पिएंगे, तभी तो लड़कियों की साइकिलों के लिए पैसे आएंगे। इस बयान के चलते उनकी काफी आलोचना हुई थी और बिहार की कई होनहार बेटियां सरकारी साइकिलें लौटाने पहुंच गई थीं।
लेकिन अब चूंकि ऐसा लग रहा है कि सरस्वती ने नीतीश जी को सद्बुद्धि प्रदान कर दी है, इसलिए पुरानी बातों से आगे बढ़ते हुए हमें उनका समर्थन करना चाहिए और बिहार में सच्ची शराबबंदी के रास्ते पर बढ़ने में उनकी मदद भी करनी चाहिए, अगर वे डगमगाते हैं तो संभालना भी चाहिए और अगर भागने की कोशिश करते हैं तो दबाव भी बनाए रखना चाहिए।
नीतीश जी से आधी शिकायत हमें शराब को बढ़ावा देने के लिए थी और आधी शिकायत मुख्य रूप से इन दो वजहों से रही-
1. पहली इस बात के लिए कि लड़कियों को साइकिलें बांटकर उन्होंने सुर्खियां तो बटोरीं, लेकिन कुल मिलाकर बिहार की सरकारी शिक्षा को ध्वस्त कर दिया। उनके दूसरे टर्म में बिहार भर के शिक्षक भी आंदोलनरत् रहे। बच्चे भी आंदोलनरत् रहे। पढ़ाई का स्तर निचले पायदानों तक पहुंच गया। मिड डे मील में भ्रष्टाचार और लापरवाही इस हद तक बढ़ गई कि ग़रीबों के बच्चों को जगह-जगह ज़हरीला खाना खिलाया गया। छपरा के धर्मासती गंडामन गांव में तो भारत के इतिहास की सबसे दर्दनाक घटना हुई, जिसमें मिड डे मील खाने से 23 बच्चों की मौत हो गई थी।
2. दूसरी इस बात के लिए कि उनके पिछले कार्यकाल में बिहार में भ्रष्टाचार चरम पर पहुंच गया था और अपराधियों को सरकारी संरक्षण की घटनाओं के लिए सबूत जुटाने की ज़रूरत नहीं पड़ती थी। वह साफ़ परिलक्षित होता था। इस बार भी विधानसभा में 135 ऐसे सदस्य पहुंचे हैं, जिनका इतिहास किसी न किसी रूप में दागदार है। नीतीश जी किस तरह उनपर लगाम कसे रखेंगे और भ्रष्टाचार को कैसे रोकेंगे, इसपर सबकी नज़र रहने वाली है, क्योंकि अगर वे ऐसा नहीं कर पाए, तो जंगलराज पार्ट-2 के आरोप से वे अपनी और लालूजी की साझा सरकार को बचा नहीं सकेंगे।
आशा करते हैं कि नीतीश जी ने एक कदम बढ़ाया है तो दूसरा कदम भी बढ़ाएंगे, ताकि उनकी सरकार सही दिशा में चलती हुई दिखाई दे। उन्हें हमारी पूरी शुभकामनाएं हैं।