Thursday, November 19, 2015

एक हैरान-परेशान बीजेपी समर्थक से बातचीत (व्यंग्य)

8 नवंबर 2015
(एक हैरान-परेशान बीजेपी समर्थक से मुलाकात हो गई। वे काफी चिंतित औऱ उदास थे। उन्हें ढाढ़स बंधाना ज़रूरी था, वरना हार्ट अटैक का ख़तरा था। उनसे हमारी बातचीत के प्रासंगिक अंश।)
“भाई साब, ये तो प्रलय-काल है। नीतीश ने तो हमें कहीं का नहीं छोड़ा। 17 साल हमने उनकी कौन-सी ख्वाहिश पूरी नहीं की, लेकिन आज लालू के साथ मिलकर उन्होंने हमारा ही काम तमाम कर दिया।“
“चिंता न करें, दो साल में नीतीश कुमार फिर से आप ही लोगों के साथ होंगे।“
“अच्छा? वो कैसे?”
“ऐसे कि नीतीश कुमार को पिछले 10 साल से बड़े भाई की तरह सरकार चलाने की आदत पड़ गई है, लेकिन अब उन्हें छोटे भाई की तरह सरकार चलानी पड़ेगी। उसपर भी यह बड़ा भाई हप्प हप्प करता है। बुरबक उरबक बोल देता है। ऐसा भला वे कब तक सह सकेंगे? ऊपर से किसी दिन भतीजों से कुछ कहा-सुनी हो गई तो?”
“हां, वो तो है। लेकिन बीजेपी से दोबारा उनका मिलन होगा कैसे?”
“ऐसे कि अगर यूपी में भी आपकी पार्टी हार गई, तो दो साल में अमित शाह अध्यक्ष पद से हट जाएंगे और नरेंद्र मोदी की ताकत भी डायल्यूट हो जाएगी। फिर नीतीश को आपके साथ आने में दिक्कत नहीं होगी, क्योंकि उन्हें न तो बीजेपी से प्रॉब्लम है, न आडवाणी, मुरली मनोहर, राजनाथ, सुषमा, जेटली या किसी अन्य से। उन्हें तो बस मोदी से प्रॉब्लम है। ...और आजकल थोड़ी बहुत शाह से।“
“सही है, लेकिन मोदी-विरोध में वे इतना आगे बढ़ गए हैं कि बीजेपी से भी बहुत दूर हो गए हैं। अब पास आने में तो बड़ी दिक्कत हो जाएगी।“
“नहीं होगी। जब 40 साल कांग्रेस-विरोध करने के बाद उससे हाथ मिलाने में दिक्कत नहीं हुई, 17 साल लालू-विरोध करने के बाद लालू से हाथ मिलाने में दिक्कत नहीं हुई, तो 4 साल आपका विरोध करने से उन्हें क्या फ़र्क़ पड़ता है? वैसे भी 17 साल तो आपके साथ रह चुके हैं न!”
“हां, लेकिन दोबारा बीजेपी के साथ आने से उन्हें मिलेगा क्या?”
“बड़े भाई की भूमिका और अपने अधिक मंत्रियों वाली सरकार। जेडीयू 71 + बीजेपी 53 = एनडीए 124. यह बहुमत के लिए ज़रूरी 122 से तो ज़्यादा ही है।”
“सही बोले, लेकिन पासवान, मांझी, कुशवाहा कहां जाएंगे?”
“तब अगर उनकी ज़रूरत रहेगी, सीट-वीट कम पड़ेगी, तो रखिएगा साथ, वरना कोई जनम-जनम का रिश्ता कायम किए हैं क्या?”
“सही बोले। जब नीतीश से जनम-जनम का रिश्ता नहीं रहा, तो पासवान, मांझी, कुशवाहा का क्या? थैंक्यू सर। थैंक्यू।”
(कहकर उनकी बांछें खिल गईं। चलो... एक पुण्य का काम तो किया मैंने आज। एक उदास व्यक्ति की बांछें खिला दीं।)

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