(3 अक्टूबर 2015)
जिन सोकॉल्ड सेकुलर बुद्धिजीवियों और सेकुलर मीडिया ने दादरी की घटना को इतना तूल दिया है, वे या तो ख़ुद किसी कॉम्युनल एजेंडे पर चल रहे हैं, या फिर कॉम्युनल लोगों के एजेंडे के हिसाब से यूज़ हो गए।
आम तौर पर तो यही माना जाता रहा है कि सांप्रदायिक मामलों की चर्चा और रिपोर्टिंग में संयम बरतना चाहिए, लेकिन जब माहौल बिहार जैसे महत्वपूर्ण राज्य में चुनाव का हो, तो शातिर लोग संयम बरतेंगे या उसपर रोटियां सेंकेंगे?
मुस्लिम के माथे के मुकुट लालू यादव कह रहे हैं कि हिन्दू भी बीफ खाते हैं और हिन्दू के हृदय के हार गिरिराज सिंह कह रहे हैं कि लालू अपने बयान के लिए माफी मांगें, नहीं तो आंदोलन किया जाएगा। बिहार में मंडल पार्ट-2 के बाद कमंडल पार्ट-2 तो होना ही था!
यह चुनाव अब पूरी तरह से जातिवादी और सांप्रदायिक शक्तियों के हाथों हाइजैक हो चुका है। जातिवाद और सांप्रदायिकता ऐसे मिक्स हुई है कि जातिवादी लोग भी सांप्रदायिक नुस्खे आजमा रहे हैं और सांप्रदायिक लोग भी जातिवादी नुस्खे अपना रहे हैं।
अब इस चुनाव में कोई जीते-हारे, व्यक्तिगत मेरी कोई दिलचस्पी नहीं बची।
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