(9 नवंबर 2015)
बीजेपी के गणितज्ञ लाख गणित लगा लें, अगर उन्हें बिहार जैसे नतीजे नहीं चाहिए तो सांप्रदायिक राजनीति छोड़नी होगी और जातीय राजनीति का जवाब ढूंढना होगा। अगर वे पार्टी विद अ डिफरेन्स होने का दावा करते हैं, तो उन्हें बड़ी लकीर खींचनी होगी। पूरे चुनाव में वे लालू-नीतीश की लकीर छोटी करने में ही लगे रह गये।
मोहन भागवत के आरक्षण वाले बयान पर ठीकरा फोड़ने से कुछ नहीं होगा। भागवत के बयान पर वे डिफेंसिव हुए, यह उनकी नादानी थी। अगर यह मुद्दा उठ ही गया था तो उन्हें लोगों को मजबूती से बताना चाहिए था कि इसकी समीक्षा क्यों ज़रूरी है। उन्हें बताना चाहिए था कि आरक्षण का लाभ क्रीमी लेयर को नहीं, बल्कि उन दलितों-पिछड़ों को मिलना चाहिए, जो सचमुच ज़रूरतमंद हैं।
रहना था बिहार में, पाकिस्तान तक पहुँच गए। बीजेपी के रणनीतिकार बौद्धिक रूप से बेहद कमज़ोर साबित हुए हैं।
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