Thursday, November 19, 2015

इस राष्ट्र में कम से कम आप तो धृतराष्ट्र मत बनिए, हे चुनाव आयोग !

(18 अक्टूबर 2015)
अगर चुनाव लोकतंत्र का "पर्व" है, तो इसे सभी समुदायों के बीच प्रेम और सद्भाव को बढ़ावा देते हुए आम जन से जुड़े उन मुद्दों के इर्द-गिर्द मनाया जाना चाहिए, जो नौजवानों और जेननेक्स्ट की भलाई के लिए ज़रूरी हों, लेकिन अगर चुनाव भी एक किस्म का "दंगा" है, तो उसे इसी तरह लड़ा जाना चाहिए, जैसे इन दिनों बिहार में लड़ा जा रहा है और बिहार से बाहर बैठे लोगों द्वारा लड़वाया जा रहा है।
हे चुनाव आयोग, अगर आप चुनाव को सचमुच एक "पर्व" की तरह कंडक्ट करा सकते हैं, तब तो ठीक, वरना अगर एक "दंगे" की तरह ही संपन्न होने के लिए छोड़ देना है, तो ये पांच-पांच चरणों वाले महीने भर लंबे "स्वतंत्र" और "निष्पक्ष" चुनाव का ढोंग बंद कर दीजिए। आपके इस महीने भर लंबे ढोंग के चक्कर में नफ़रत और उन्माद के व्यापारियों को भी काफी लंबा वक़्त मिल जाता है, जिससे देश के मन-मस्तिष्क पर काफी बुरा असर पड़ता है।
हे चुनाव आयोग, आपकी आचार संहिता किस काम की, अगर राजनीतिक दल, उम्मीदवार, मीडिया और बुद्धिजीवी उसे खुलेआम ठेंगा दिखाते रहे तो? आपने चुनाव के दौरान जातियों और संप्रदायों के बीच नफ़रत फैलाने के लिए आज तक कितने राजनीतिक दलों की मान्यता रद्द की है, कितने नेताओं को दस-बीस साल के लिए जेल में ठूंस दिया है, कितने चैनलों का लाइसेंस रद्द करवा दिया है और कितने बुद्धिजीवियों को अपनी बौद्धिकता पर लगाम कसने को कहा है?
हे चुनाव आयोग, थोड़ा और खुलकर बोल देता हूं। आप अगर नेताओं को भड़काऊ बयान देने से रोकना चाहते हैं, तो मीडिया को भी तो वे भड़काऊ बयान दिखाने से रोकिए। मीडिया की "स्वतंत्रता" जाए भाड़ में, अगर चुनाव की "स्वतंत्रता" बनाए रखनी है, तो कम से कम चुनाव-काल के लिए तो एक सख्त आचार-संहिता मीडिया के लिए भी बनाइए, जिसका पालन नहीं करने पर उनका भी लाइसेंस रद्द करने का प्रावधान हो।
मीडिया के ज़रिए राजनीतिक दलों का महीनों लंबा यह खेल क्या आपको समझ में नहीं आता है, हे चुनाव आयोग? लोगों के मन-मस्तिष्क में ज़हर घुलता रहे, लोग मुद्दों की बजाय जाति और धर्म के नाम पर वोट दे आएं, चुनाव में भाग लेने वाली पार्टियां और उम्मीदवार संकीर्ण सोच से "स्वतंत्र" हो ही न पाएं और सभी वर्गों-समुदायों के लिए "निष्पक्ष" हो ही न पाएं, तो ऐसे "स्वतंत्र" और "निष्पक्ष" चुनाव का हम क्या करें, हे चुनाव आयोग?
हे चुनाव आयोग, कृपया "स्वतंत्र" और "निष्पक्ष" चुनाव की परिभाषा भी नए सिरे से तय करने का कष्ट करें। अभी आप जिस चुनाव को "स्वतंत्र" और "निष्पक्ष" कहकर अपनी पीठ थपथपा लेते हैं, मेरी समझ से वह "फूट डालो और राज करो" की नीति पर चलने वाले "नव-अंग्रेज़ों" का चुनाव है।

No comments:

Post a Comment