Thursday, November 19, 2015

फारबिसगंज नरसंहार करके भी सेक्युलर-शिरोमणि बने हुए हैं नीतीश बाबू!

(16 अक्टूबर 2015)
"सत्य नहीं होता सुपाच्य, किंतु यही वाच्य।" इसी सूत्र पर कायम रहते हुए जब सत्य को क्रूड फॉर्म में लोगों के सामने रख देता हूं, तो कइयों को अखर जाता है। कहते हैं कि सेक्युलरिज़्म की लड़ाई कमज़ोर हो रही है। लेकिन सच्चाई यह है कि सेक्युलरिज्म इस देश की राजनीति में कहीं है ही नहीं। हाँ, सेक्यूलरिज्म के नाम पर बहुत सी दुकानें ज़रूर खुल गयी हैं।
अब ज़रा इस वीडियो को देखिए और तय कीजिए कि उत्तर प्रदेश के दादरी में अख़लाक़ के साथ अधिक बुरा हुआ या बिहार के फॉरबिसगंज में इन लोगों के साथ अधिक बुरा हुआ-https://www.youtube.com/watch?v=Ncn2akDul9w
मुझे तो लगता है दोनों के साथ बहुत बुरा हुआ। बस फ़र्क़ इतना है कि अख़लाक़ को कॉम्युनल भीड़ ने मारा और फॉरबिसगंज के इन ग़रीब मुसलमानों को नीतीश कुमार की सुपर-सेक्युलर सरकार ने मारा। और "मारा तो मारा"... बिके हुए बुद्धिजीवियों की भावना अक्सर यही रहती है, क्योंकि "सेक्युलर हिंसा हिंसा न भवति। सेक्युलर दंगा दंगा न भवति। सेक्युलर अत्याचार अत्याचार न भवति।"
बताया जाता है कि इस सरकारी नरसंहार के पीछे बीजेपी के एक विधान-पार्षद अशोक अग्रवाल थे, जो तत्कालीन उप-मुख्यमंत्री सुशील मोदी के चहेते थे। और सुशील मोदी जी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के चहेते थे। इतने चहेते कि उन्होंने ख़ुद ख़ुलासा किया है कि इन्हीं छोटे मोदी के कहने पर उन्होंने बड़े मोदी का भोज कैंसिल कर दिया था।
अब "सेक्युलरिज़्म" के नाम पर नीतीश बाबू को सपोर्ट कीजिए। क्या हुआ जो 17 साल तक "कॉम्युनल" भाजपा की गोद में बैठकर उन्होंने सत्ता की मलाई चाटी! क्या हुआ जो बाबरी-विध्वंस के उन्हीं आरोपी लालकृष्ण आडवाणी की चरण-वंदना से भी उन्हें परहेज नहीं था, जिन्हें उनके आजकल के शागिर्द लालू यादव की सरकार ने गिरफ़्तार कर लिया था? क्या हुआ जो गुजरात दंगे के ठीक बाद न सिर्फ़ वे वाजपेयी सरकार में मंत्री बने रहे, बल्कि नरेंद्र मोदी की तारीफ़ भी करते रहे और उनसे गुजरात से बाहर निकलकर देश का नेतृत्व करने की अपील भी करते रहे? देखिए- https://www.youtube.com/watch?v=1-Pq778iKMk(शुरु में 30 सेकेंड और 9 मिनट के बाद)
अगर इस देश में सेक्युलरिज़्म-विमर्श इसी तरह चलता रहा, तो गारंटी है कि न कभी दंगे रुकेंगे, न कभी हिन्दुओं-मुसलमानों का बंटवारा ख़त्म होगा। न मुसलमानों में सुरक्षा की भावना आएगी, न हिन्दुओं की यह टीस ख़त्म होगी कि मुस्लिम तुष्टीकरण होता है।
हमारे मुसलमान भाई-बहन अगर ऐसे-ऐसे सेक्युलरों के चक्कर में फंसे रहे, तो ईश्वर, अल्लाह और ब्रह्मांड के सारे ख़ुदा एक साथ मिलकर भी उनका भला नहीं कर सकते। सॉरी।

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