(16 नवंबर 2015)
साफ़ है कि नीतीश कुमार मोदी-विरोधी राजनीति के झंडावरदार बनना चाहते हैं, सेकुलरिज्म से उनका कोई लेना-देना नहीं, वरना शिवसेना के साथ यारी गांठने की कोशिश नहीं करते।
साफ़ है कि नीतीश कुमार मोदी-विरोधी राजनीति के झंडावरदार बनना चाहते हैं, सेकुलरिज्म से उनका कोई लेना-देना नहीं, वरना शिवसेना के साथ यारी गांठने की कोशिश नहीं करते।
सबको पता है कि शिवसेना उग्र हिंदुत्व और क्षेत्रवाद की राजनीति करती है और जिस तथाकथित असहिष्णुता की बात एंटी-बीजेपी कैंप कर रहा है, शिवसेना उसकी सबसे बड़ी प्रतीकों में से है।
हाल-फिलहाल असहिष्णुता की चर्चा में जिस कालिख-काण्ड की भी चर्चा गरम थी, उसकी सूत्रधार शिवसेना ही थी। इतना ही नहीं, शिवसेना की ही वजह से ग़ुलाम अली का शो मुंबई में नहीं हो सका।
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि नीतीश कुमार आज अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए इस तथ्य की भी अनदेखी कर रहे हैं कि शिवसेना ने बिहार के लोगों पर महाराष्ट्र में कितने हमले कराये हैं और उन्हें कितना नुकसान पहुँचाया है।
मुझे समझ में नहीं आता कि नीतीश कुमार के लिए विचारों के लिए प्रतिबद्धता भी कोई चीज़ है कि नहीं? या अवसरवाद ही सब कुछ है?
No comments:
Post a Comment