(8 नवंबर 2015)
लालटेन की रोशनी में तीर के सारे निशाने कमल पर सही लगे। यह रिजल्ट अनपेक्षित नहीं था। लोकसभा चुनाव के बाद पिछले साल 10 विधानसभा सीटों के लिए हुए उपचुनाव के नतीजों से ही इसका संकेत मिल गया था। इस चुनाव के लिए भी महागठबंधन की तैयारी हर स्तर पर बीजेपी से बेहतर थी। मोदी और बीजेपी का हर राज़ जानने वाले प्रशांत किशोर की चाणक्य-बुद्धि भी महागठबंधन के काम आ गई।
1. आरजेडी, जेडीयू और कांग्रेस ने सारे मतभेद भुलाकर चुनाव से साल भर पहले ही मज़बूत गठबंधन बना लिया।
2. लालू यादव ने सारा इगो छोड़कर नीतीश को अपना नेता स्वीकार कर लिया और चुनाव से छह महीना पहले ही उन्हें मुख्यमंत्री पद के लिए पेश किया। बीजेपी उनके मुकाबले कोई चेहरा पेश कर ही नहीं पाई।
3. सीट बंटवारे के वक्त लालू के समधी मुलायम सिंह ने तेवर दिखाए, तो रिश्तेदारी भूलकर उन्होंने भी उनसे विनम्रता से किनारा कर लिया।
4. लोग कांग्रेस के लिए 41 सीटें बहुत ज़्यादा मान रहे थे, लेकिन लालू और नीतीश ने यह कुर्बानी भी दी।
5. लालू और नीतीश दोनों ने अपनी सीटों की भी कुर्बानी दी। जेडीयू ने 2010 में 115 सीटें जीतीं, लेकिन लड़े उससे भी कम यानी 101 पर। इसी तरह आरजेडी ने भी 2010 की तुलना में काफी कम सीटों पर चुनाव लड़ा। सिर्फ़ 101 सीटों पर। ऐसा करके दोनों ने संकेत दिया कि गठबंधन में दोनों बराबर हैं। न कोई बड़ा। न कोई छोटा।
6. नीतीश कुमार ने सुशासन बाबू की अपनी छवि के हिसाब से विकास के एजेंडे पर फोकस किया और लालू यादव ने सामाजिक न्याय को मुख्य मुद्दा बनाकर मोदी-ब्रिगेड के ख़िलाफ़ आक्रामक प्रचार की कमान संभाली। यह उसी तरह था, जैसे एक छोर पर खड़ा बल्लेबाज़ धुआंधार बैटिंग करे, तो दूसरे छोर का बल्लेबाज़ संभलकर बैटिंग करता है।
7. बिहार के नब्ज़ और सामाजिक समीकरणों की लालू की समझ बीजेपी की तुलना में अधिक परिपक्व निकली। हालांकि जातिवादी राजनीति का समर्थन नहीं किया जा सकता, लेकिन चुनाव को अगड़े और पिछड़े की लड़ाई बताकर लालू ने बिहार की बड़ी आबादी को अपने पक्ष में कर लिया। आरक्षण पर मोहन भागवत के बयान ने उनका काम और आसान कर दिया।
8. आरक्षण, दादरी, फरीदाबाद और महंगी दाल के मुद्दे को भी लालू-नीतीश ने कामयाबी से भुनाया। डीएनए, शैतान और पाकिस्तान वाले मोदी के बयानों पर लालू-नीतीश उन्हें घेरने में कामयाब रहे।
9. लालू-नीतीश ने अपनी ज़बर्दस्त रणनीति से पीएम मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को इतना फ्रस्ट्रेट कर दिया कि उनके भाषणों का स्तर गिरता ही चला गया। महागठबंधन की यह रणनीति भी काम कर गई।
10. दिल्ली में कांग्रेस ने असहिष्णुता के मुद्दे पर बुद्धिजीवियों को पुरस्कार लौटाने के लिए लामबंद किया। पूरे एक महीने तक चले इस अभियान का फायदा भी महा-गठबंधन को पुरज़ोर मिला।
इनके अलावा, बीजेपी की दसियों गलतियों ने भी महागठबंधन की महाजीत का रास्ता प्रशस्त कर दिया।
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