Thursday, November 19, 2015

बलि के बकरों के लिए किसका काँपता है कलेजा?

(3 अक्टूबर 2015)
अख़लाक़ को किसी हिन्दू ने नहीं मारा। हिन्दू इतने पागल नहीं होते हैं। उसे भारत की राजनीति ने मारा है, जिसके लिए वह बलि का एक बकरा मात्र था। सियासत कभी किसी हिन्दू को, तो कभी किसी मुस्लिम को बलि का बकरा बनाती रहती है। इसलिए जिन भी लोगों ने इस घटना को हिन्दू-मुस्लिम रंग देने की कोशिश की है, वे या तो शातिर हैं या मूर्ख हैं।
बिहार चुनाव से पहले इस तरह की किसी घटना की आशंका पहले से थी, लेकिन बिहार में अभी ऐसी घटना करना खतरे से खाली नहीं था, इसीलिए इसके लिए हज़ार किलोमीटर दूर राष्ट्रीय मीडिया और बुद्धिजीवियों की नाक के नीचे उत्तर प्रदेश के उस इलाके को चुना गया, जिसे पहले से ही इस तरह की राजनीति का एक्सपेरिमेंट ग्राउंड बनाकर रखा गया है।
घटना के मास्टरमाइंड को पता था कि दिल्ली का मीडिया TRP का लोभ संवरण नहीं कर पाएगा। साथ ही, उसमें भेड़चाल की प्रवृत्ति भी है और वह मैनेजेबल भी है। इतना ही नहीं, इस मामले की जितनी चर्चा होगी, उनका मकसद उतना पूरा होगा। मकसद था विवाद को अंततः गाय के इर्द-गिर्द लेकर आना, जो कि करीब-करीब प्राप्त हो चुका है।
इस तरह की घटनाओँ में व्यक्ति और स्थान महत्वपूर्ण नहीं होता, वह सेंटीमेंट महत्वपूर्ण होता है, जिसमेँ देश की बड़ी आबादी को प्रभावित करने की क्षमता होती है। इसलिए इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि यह घटना दादरी के एक छोटे से गाव में कराई गयी है, इसमें पूरे देश में ध्रुवीकरण कराने की क्षमता है। बिहार में भी।
इस ध्रुवीकरण पॉलिटिक्स के लिए औज़ार बनाए गए दो लाउड-स्पीकर। पहले स्थानीय स्तर पर छोटे लाउड स्पीकर का इस्तेमाल करके अफवाह फैलाई गई और फिर बड़े लाउडस्पीकर (मीडिया) को यूज़ करके राष्ट्रीय स्तर पर सनसनी और उन्माद फ़ैलाने की कोशिश हुई। अब अख़लाक़ की मौत से देश के मुसलमान भी आहत हैं और गाय की हत्या नहीं रुक रही, इसलिए हिन्दू भी आहत हैं।
बात कड़वी है, लेकिन सच यही है कि बलि होने वाले बकरे और बकरे की अम्मा को चाहे जितना दर्द होता हो, बाकी सबको मज़ा आता है। इस मामले में भी मज़ा लूटने वालों की फ़ौज देखिए- ओवैसी से लेकर लालू, केजरीवाल, अखिलेश और राहुल तक। गिरिराज से लेकर प्राची तक।
जैसे अपने स्वाद के लिए बेजुबान बकरे की बलि देने में आपको ममता नहीं आती, वैसे ही अपने फायदे के लिए कमज़ोर लोगों को बलि का बकरा बना लेने में सियासतदानों को भी उनका ज़मीर नहीं धिक्कारता। आपने जैसी दुनिया चुनी है, उसमें ताकतवर और शातिर लोग अपने से कमज़ोर बकरों की बलि इसी तरह चढ़ाते रहेंगे। अपने से कमज़ोरों के लिए न आपका दिल कांपेगा, न आपसे मज़बूतों का आपके लिए कांपेगा।
इसलिए हाहाकर करने से कुछ नहीं होगा। सोचने और समझने से कुछ हो सकता है।

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