Thursday, November 19, 2015

मोदी जी, यह 'दूसरा संप्रदाय' कौन है?

(26 अक्टूबर 2015)
यह साफ़ है कि मोदी को अपनी हिंदुत्व वाली छवि से कोई परहेज नहीं है। बक्सर की सभा में उन्होंने लालू-नीतीश पर दलितों-महादलितों-पिछड़ों-अतिपिछड़ों के आरक्षण में से 5-5% की कटौती करके "दूसरे संप्रदाय" को देने की साज़िश करने का आरोप लगाते हुए कहा कि चूंकि संविधान-निर्माताओं ने धर्म के आधार पर आरक्षण को मंजूरी नहीं दी है, इसलिए मोदी जान लगा देगा, लेकिन लालू-नीतीश की साज़िश को कामयाब नहीं होने देगा।
मेरा ख्याल है कि पीएम बनने के बाद पहली बार मोदी ने ऐसा छाती-ठोंक बयान दिया है। अभी तक बीजेपी आरक्षण पर सफाई की मुद्रा में थी, लेकिन दो चरणों के चुनाव के बाद वह अचानक आक्रामक हो गई है। हालांकि यह स्पष्ट है कि संविधान-निर्माताओं ने धर्म के आधार पर आरक्षण की व्यवस्था नहीं की है, फिर भी देश के प्रधानमंत्री अगर अपने नागरिकों के लिए 'एक संप्रदाय' और 'दूसरे संप्रदाय' जैसे शब्दों का इस्तेमाल करें, तो इससे अच्छा मैसेज नहीं जाता।
लालू-नीतीश का खेल भी कोई साफ़-सुथरा नहीं है। वे भी 21वीं सदी के दूसरे दशक में बिहार को 20वीं सदी में ले जाने वाली राजनीति कर रहे हैं और चुनाव को अगड़ा-पिछड़ा लड़ाई बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। देखा जाए तो यह बिहार के इतिहास का सबसे गन्दा चुनाव है, जिसमें यूपी और हरियाणा की घटनाएँ तो मुद्दा बना दी गयीं, लेकिन बिहार के अपने मुद्दों को जगह ही नहीं मिली। जाति और संप्रदाय की राजनीति की यही परिणति होती है।

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