Thursday, November 19, 2015

आज़मख़ानी कीड़े से बचिए और देश को बचाइए

(17 नवंबर 2015)

आज़मख़ानी कीड़ा कीड़े की एक ऐसी प्रजाति है जो लोगों की चेतना को ही चाट जाती है। यहां यह डिस्क्लेमर दे दूं कि अगर इस कीड़े का नाम किसी व्यक्ति से मिलता-जुलता हो, तो इसकी ज़िम्मेदारी उस व्यक्ति की ही होगी, मेरी नहीं।
अगर क्रिया-प्रतिक्रिया सिद्धांत के हिसाब से बेकसूर लोगों पर पेरिस जैसे हमले को भी जस्टिफाइ किया जा सकता है, तो फिर दुनिया में हिंसा की ऐसी कोई घटना नहीं, जिसे जस्टिफाइ न किया जा सके।
***फिर तो सचमुच 13 साल बाद भी जो लोग हाथ धोकर मोदी के पीछे पड़े हैं, वे ग़लत हैं,क्योकि सबको पता है कि गुजरात दंगा गोधरा कांड की प्रतिक्रिया थी?
***फिर तो 31 साल बाद भी हम क्यों कोसते हैं कांग्रेस को, जबकि सबको मालूम है कि दिल्ली का सिख-विरोधी दंगा इंदिरा गांधी की हत्या की प्रतिक्रिया थी?
***फिर क्यों आंसू बहाएं हम उड़ीसा में ग्राहम स्टेंस को ज़िंदा जला दिए जाने पर, जबकि सबको पता है कि धर्मांतरण की घटनाओं के ख़िलाफ़ एक तबके में ग़ुस्सा था?
***फिर तो गांधी के हत्यारे के महिमामंडिन पर भी हम क्यों हायतौबा मचाएं, क्योंकि सबको पता है कि विभाजन के बाद पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये दिलाने के लिए गांधी जी के अनशन की प्रतिक्रया में गोडसे ने की थी उनकी हत्या?
***क्या आपको लगता है कि आज तक देश में कोई भी दंगा ऐसा हुआ है, जिसे किसी न किसी क्रिया की प्रतिक्रिया न ठहराया जा सके?
अगर नहीं, तो आज़मख़ानी कीड़े से बचिए और देश को बचाइए। इस कीड़े से प्रभावित लोग हर जाति और हर धर्म में पाए जाते हैं, लेकिन ऐसे कीड़े किसी जाति या धर्म के लिए फ़ायदेमंद नहीं होते, बल्कि धीरे-धीरे उन्हें ही चट कर जाते हैं।

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